पिछले कुछ वर्षों में, डेरिवेटिव ट्रेडिंग यानी फ्यूचर्स एण्ड ऑप्शन (F&Os) ट्रेडिंग में वृद्धि हुई है। साथ ही बहुत से लोग शेयर बाजार में रुचि रखते हैं और वे कई बार जल्दी मुनाफा कमाने के लिए इंट्रा-डे ट्रेडिंग करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें लाभ या हानि होती है। चूंकि वे कम मात्रा में ट्रेडिंग करते हैं इसलिए इससे होने वाले लाभ अथवा हानि का उनके लिए कोई बहुत ज्यादा महत्व नहीं रहता है। ऐसे करदाता, आयकर रिटर्न की ई-फाइलिंग के समय अक्सर अपने आईटीआर में इन लेनदेन का उल्लेख नहीं करते हैं। परंतु अब आयकर विभाग के पास ब्रोकर्स के माध्यम से सारी जानकारी उपलब्ध हो रही है इसलिए यदि करदाता कोई भी जानकारी अपने आयकर रिटर्न में नहीं देता है तो भविष्य में विभाग की तरफ से नोटिस आ सकता है तथा कर के साथ ही ब्याज एवं पेनाल्टी भी लग सकती है। शेयर मार्केट में तीन तरीके से सौदे होते हैं, जिसमें पारंपरिक शेयर ट्रेडिंग, इंट्राडे शेयर ट्रेडिंग तथा फ्यूचर्स एवं ऑप्शन के माध्यम से ट्रेडिंग शामिल है। पारंपरिक शेयर ट्रेडिंग से होने वाली आय को आयकर रिटर्न में केपिटल गेन हेड के अंतर्गत टैक्स दायरे में लिया जाता है। इंट्रा डे शेयर ट्रेडिंग को स्पेकुलेटिव बिजनेस के रूप से टैक्स किया जाता है तथा बाकी सभी ट्रेडिंग को सामान्य व्यापार की तरह टैक्स किया जाता है।
भिलाई सीए ब्रांच के पूर्व चेयरमेन सीए पियूष जैन ने बताया कि डेरिवेटिव एक प्रकार का व्यापारिक साधन है। फ्यूचर्स और ऑप्शंस भारतीय शेयर बाजारों में ट्रेडिंग के लिए दो प्रकार के डेरिवेटिव उपलब्ध हैं। एक वायदा अनुबंध निवेशकों को बाद की तारीख में डिलीवरी के लिए एक निश्चित कीमत पर स्टॉक खरीदने या बेचने में सक्षम बनाता है। स्टॉक पर उपलब्ध कॉल ऑप्शन निवेशक को बाद की तारीख में एक निश्चित कीमत के लिए सामान्य स्टॉक (अंतर्निहित संपत्ति) खरीदने की सुविधा देता है; दूसरी ओर, एक पुट विकल्प आपको सामान्य स्टॉक को बेचने में सक्षम बनाता है।
सीए पियूष जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि चूंकि एफएंडओ ट्रेडिंग से होने वाली आय को सामान्य व्यावसायिक आय के रूप में माना जाता है और केपिटल गेन (हानि) में नहीं , इसलिए टैक्स ऑडिट पर लागू होने वाले सामान्य नियम, जैसा कि धारा 44एबी में कहा गया है, एफएंडओ ट्रेडिंग के मामले में भी लागू होंगे। इसलिए, F&O ट्रेडिंग के मामले में टैक्स ऑडिट की उपयुक्तता अवश्य होगी। उन्होंने बताया कि यदि वित्तीय वर्ष में किसी व्यवसाय की बिक्री, टर्नओवर या सकल प्राप्तियां 1 करोड़ रुपये से अधिक हैं, तो करदाता को टैक्स ऑडिट करवाना आवश्यक है। यदि करदाता की नकद प्राप्तियां सकल प्राप्तियों या टर्नओवर के 5% तक सीमित हैं, और यदि करदाता का नकद भुगतान कुल भुगतान के 5% तक सीमित है तब टैक्स ऑडिट की सीमा कर निर्धारण वर्ष 2022-23 (वित्त वर्ष 2021-22) 10 करोड़ रुपये हो गई है। यदि एफएण्डओ ट्रेडिंग में 2 करोड़ तक का टर्नओवर है तो करदाता 6 प्रतिशत मुनाफा दिखाकर ऑडिट से मुक्त हो सकता है बाकि सभी केस में ऑडिट अनिवार्य होगा तथा बुक्स ऑफ एकाउंट्स भी बनाना अनिवार्य होगा। साथ ही बुक्स मेंटेन करने से हमें खर्चों की छूट भी मिलती है, जिसमें ब्रोकरेज, ब्रोकर कमीशन, फोन बिल्स, इंटरनेस बिल, निवेश सलाहकार के खर्चे आदि शामिल है।
श्री जैन ने बताया कि फ्यूचर्स एण्ड ऑप्शन से होने वाली सभी आय जिसमें लाभ या हानि दोनों ही शामिल है, को व्यवसायिक आय की तरह ट्रीट किया जायेगा। इनकम टैक्स दाखिल करते समय इनकम और हानि दोनों ही सही रिपोर्टिंग करना जरूरी होता है, इसलिए यह स्पष्ट किया गया है कि फ्यूचर्स एण्ड ऑप्शन से होने वाले लाभ या हानि दोनों व्यवसायिक आय होंगे। श्री जैन ने बताया कि फ्यूचर्स और ऑप्शंस के व्यापार से होने वाले किसी भी नुकसान को यदि आयकर रिटर्न ड्यू डेट से पहले जमा करने से अगले 8 वर्षों तक कैरी फॉरवर्ड कर सकते हैं। किसी भी अन्य व्यवसाय से करदाता को प्राप्त होने वाली किसी भी आय के खिलाफ ऑफसेट किया जा सकता है।
फ्यूचर्स और ऑप्शंस को शेयर ट्रेडिंग की तरह केपिटल गेन की श्रेणी में नहीं माना जाएगा
श्री जैन ने बताया कि आयकर अधिनियम की धारा 43(5) में कहा गया है कि फ्यूचर्स और ऑप्शंस ट्रेडिंग के दौरान होने वाले किसी भी लेनदेन को शेयर ट्रेडिंग की तरह केपिटल गेन की श्रेणी में नहीं लिया जाता है न ही इसे स्पेक्यूलेटिव बिजनेस माना जाएगा। इसका मतलब यह है कि इस तरह के व्यापार से होने वाले किसी भी लाभ पर उसी तरह से कर लगाया जाएगा जैसे किसी अन्य प्रकार के व्यवसाय को चलाने से प्राप्त आय या लाभ पर।
आईटीआर में फ्यूचर्स और ऑप्शंस लेनदेन की रिपोर्टिंग करना इसलिए जरूरी
श्री जैन ने बताया कि लाभ हो या हानि फ्यूचर्स और ऑप्शंस के लेनदेन में शामिल व्यक्ति को अपने आईटीआर में इसका उल्लेख करना चाहिए, बशर्ते कुल आय एक वित्तीय वर्ष में टैक्स-मुक्त सीमा से अधिक हो। यदि कोई व्यक्ति असमायोजित पूंजीगत हानि को आगे बढ़ाना चाहता है या पिछले वर्ष से इस तरह के नुकसान को आगे लाना चाहता है, तो आईटीआर दाखिल करना आवश्यक होगा। श्री जैन ने बताया कि व्यापार हानि को शेष मदों से आय से समायोजित किया जा सकता है जैसे कि किराये की आय या ब्याज आय (वेतन आय से समायोजित नहीं किया जा सकता)। किसी भी असमायोजित नुकसान को आठ साल के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है। हालांकि, भविष्य में, उन्हें केवल व्यवसायिक आय से ही समायोजित किया जा सकता है। इस तरह के लेन-देन को छोड़ने से न केवल गैर-प्रकटीकरण के लिए एक नोटिस आमंत्रित किया जाएगा, बल्कि कर से बचने के कारण दंडात्मक कार्रवाई भी की जा सकती है।
उन्होंने बताया कि आईटीआर दाखिल करने से कई लाभ मिलते हैं जैसे कि कटौती का दावा करना, नुकसान की भरपाई करना और आगे ले जाना, कर देयता पर ब्याज और दंड से बचना, और इसी तरह समय पर अपना आयकर रिटर्न दाखिल करना हमेशा एक विवेकपूर्ण कार्रवाई मानी जाती है। किसी भी अन्य लाभ से अधिक, कानून के दाईं ओर होने से मदद मिलती है। आयकर विभाग को अपनी आय और करयोग्यता के बारे में सूचित रखने की सिफारिश की जाती है। यह संचार तभी संभव है जब कोई अपना आईटीआर फाइल करे।